Chhath Puja | छठ पूजा
Chhath Puja | छठ पूजा

Chhath Puja | छठ पूजा का इतिहास, जानें कैसे हुई छठ पूजा की शुरुआत

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छठ पूजा (Chhath Puja) एक प्रमुख हिंदू पर्व / त्योहार है, जो विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। यह पूजा सूर्य देवता (Surya Dev) और उनकी बहन छठी माई (Chhathi Maiya) की उपासना के लिए होती है। यह पर्व खासकर कृषि समुदाय के लोगों द्वारा मनाया जाता है और एक नहाय-खाय (पवित्र स्नान और भोजन) से लेकर 4 दिनों की धार्मिक प्रक्रिया में संपन्न होता है।

छठ पूजा का इतिहास (History of Chhath Puja):

छठ पूजा की प्राचीनता का कोई निश्चित प्रमाण नहीं है, लेकिन यह पूजा भारतीय उपमहाद्वीप के प्राचीन वैदिक संस्कृति और आध्यात्मिक परंपराओं से जुड़ी हुई मानी जाती है। छठ पूजा का संबंध सूर्य देवता की पूजा से है, जिन्हें वैदिक काल से ही संसार का प्रकाश और जीवनदाता माना जाता है। सूर्य देवता की पूजा का इतिहास लगभग 4,000 साल पुराना है, और यह पूजा सूर्य के साथ जुड़ी हुई संस्कृतियों के अनुरूप विकसित हुई।

कुछ विद्वानों का मानना है कि छठ पूजा का संबंध महाभारत और रामायण जैसे प्राचीन ग्रंथों से भी है, क्योंकि इन ग्रंथों में सूर्य देवता की पूजा का उल्लेख है। इसके अलावा, छठी माई (जिसे देवी उर्वशी या अनुराधा देवी भी कहा जाता है) की पूजा भी परंपरागत रूप से इस दिन की जाती है, जो सूर्य देवता की बहन मानी जाती हैं।

छठ पूजा की शुरुआत कैसे हुई (Origin of Chhath Puja):

छठ पूजा की शुरुआत के बारे में कुछ प्रचलित कथाएँ हैं, जो इस पूजा के महत्व और उसके कारण को समझने में मदद करती हैं।

1. महाभारत से जुड़ी कथा:

महाभारत में पांडवों के वनवास के दौरान माता कुंती ने सूर्य देवता की पूजा की थी। उनकी इच्छा थी कि उनका पुत्र सूरज से शक्तिशाली बने। इसलिए, उन्होंने सूर्य देवता को प्रसन्न करने के लिए विशेष रूप से पूजा की। जब सूर्य देवता ने उन्हें आशीर्वाद दिया, तो उनका पुत्र कर्ण अत्यधिक शक्तिशाली हुआ। कर्ण को सूर्य देवता का आशीर्वाद प्राप्त था और वह महान योद्धा बने। इस पूजा की परंपरा धीरे-धीरे बिहार और अन्य क्षेत्रों में फैल गई, जहां सूर्य देवता को सम्मानित किया गया।

2. रामायण से जुड़ी कथा:

रामायण के अनुसार, भगवान राम और माता सीता ने अयोध्या लौटने के बाद सूरज देवता की पूजा की थी। उनका उद्देश्य अपने राज्य की समृद्धि और खुशहाली के लिए था। इस पूजा का आयोजन अयोध्या के लोग बड़े श्रद्धा भाव से करते थे, और बाद में यह परंपरा छठ पूजा के रूप में विस्तारित हो गई।

3. छठी माई की पूजा:

इस पूजा में, छठी माई (जो सूर्य देवता की बहन मानी जाती हैं) की पूजा भी होती है। मान्यता है कि जब सूर्य देवता ने अपनी बहन छठी माई की सहायता से पृथ्वीवासियों को सुख और समृद्धि दी थी, तभी से इस दिन छठ पूजा का आयोजन हुआ। यह पूजा पूरी तरह से प्राकृतिक तत्वों—सूर्य, जल, पृथ्वी और हवा—के साथ जुड़ी हुई है।

छठ पूजा का महत्व:

छठ पूजा का महत्व सूर्य देवता की पूजा के साथ-साथ यह भी है कि यह पूजा शुद्धता, पवित्रता, और परिवार के कल्याण की पूजा है। यह पर्व मुख्यतः कृषि समुदायों के बीच बेहद लोकप्रिय है क्योंकि सूर्य देवता कृषि और जीवन के सभी पहलुओं का संरक्षण करते हैं। इस पूजा के दौरान विभिन्न व्रत और अनुष्ठान किए जाते हैं, जिनका उद्देश्य जीवन में धन, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति और परिवार के सदस्यों की स्वस्थता और दीर्घायु के लिए किया जाता है।

छठ पूजा का एक विशेष पहलू यह है कि इसमें व्रति नदी या तालाब के किनारे जाकर सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित करते हैं, जो सूर्य के प्रति गहरी श्रद्धा और विश्वास को दर्शाता है। यह पूजा एक प्रकार से प्रकृति और मानव जीवन के बीच संबंध को मान्यता देती है।

छठ पूजा की विशेषताएँ (Features of Chhath Puja):

छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला एक कठिन और पवित्र व्रत है। इसमें श्रद्धालु उपवास रखते हैं, स्नान करते हैं, और सूर्य देवता की पूजा करते हैं। पूजा की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

  1. पहला दिन – नहाय-खाय (Nahay Khay):
    • इस दिन, व्रति (जो पूजा करते हैं) अपने घरों में पवित्र स्नान करते हैं और शुद्धता के प्रतीक रूप में सादा खाना (आलू, कद्दू, चावल) खाते हैं। यह दिन इस बात को सुनिश्चित करता है कि व्रति पूरी तरह से शुद्ध हो चुके हैं।
  2. दूसरा दिन – खरना (Kharna):
    • इस दिन, व्रति 24 घंटे का उपवास रखते हैं और दिन में पूरी श्रद्धा के साथ पकवान बनाकर सूर्य देवता को अर्पित करते हैं। फिर वही पकवान परिवार के अन्य सदस्यों के साथ खाया जाता है। यह दिन पूजा की तैयारी का दिन होता है।
  3. तीसरा दिन – संतान अर्घ्य (Santan Arghya):
    • इस दिन, व्रति नदी या तालाब किनारे सूर्य देवता और छठी माई को अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह दिन सूर्य के प्रति आस्था और आभार का प्रतीक होता है।
  4. चौथा दिन – उषा अर्घ्य (Usha Arghya):
    • इस दिन, उगते हुए सूरज को अर्घ्य अर्पित किया जाता है, जो विशेष रूप से व्रति और उनके परिवार के अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना का प्रतीक है।

छठ पूजा के दौरान सावधानियाँ (Precautions During Chhath Puja):

  • स्वच्छता का पालन: पूजा में स्वच्छता और पवित्रता बनाए रखना बेहद महत्वपूर्ण है। व्रति नदी या तालाब में स्नान करने से पहले स्वयं को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं।
  • उपवास का पालन: यह व्रत बहुत कठिन होता है, क्योंकि व्रति पूरे दिन और रात बिना भोजन और पानी के उपवास करते हैं।
  • सुरक्षा: पूजा के दौरान नदी या तालाब में स्नान करते समय सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए, खासकर अगर पूजा स्थल दूर होता है या जलस्तर ऊँचा होता है।

निष्कर्ष:

छठ पूजा सूर्य देवता की पूजा का एक प्राचीन और महान पर्व है, जो जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, समृद्धि, और स्वास्थ्य की प्राप्ति का प्रतीक है। यह पर्व प्राकृतिक तत्वों और सूर्य के प्रति श्रद्धा को प्रदर्शित करता है और भाई-बहन, परिवार और समाज के बीच एकता का संदेश देता है। इसके द्वारा हम न केवल सूर्य के प्रति आभार व्यक्त करते हैं, बल्कि परिवार और समाज में सामूहिक एकता और प्राकृतिक संसाधनों की महत्ता को भी समझते हैं।

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